स्वाध्याय स्व से मिलता हैं स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ स्व $ अध्ययन से है स्वाध्याय एक महान गुण है। ’द्रव्यज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथपरे। स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशित व्रताः।। श्री कृष्ण कहते है... Read more »
जिस प्रकार देवताओं में पुरूषोŸाम सर्वश्रेष्ठ हैं। वैसे ही तीर्थों में पुष्कर आदि तीर्थ है – यथा सुराणां सर्वेषामादिस्तु पुरूषोŸामः। तथैव पुष्करं राजंस्तीर्थानामादिरूच्यते।। इसे सिद्धतीर्थ माना गया है। कहते... Read more »
शंकर का अर्थ है- कल्याण करने वाला। अतः भगवान् शंकर का काम केवल दूसरों का कल्याण करना है। जैसे संसार में लोग अन्नक्षेत्र खोलते हैं, ऐसे ही भगवान् शंकर... Read more »
महाप्रलयपर्यन्तं कालचक्रं प्रकीर्तितम्। कालचक्रविमोक्षार्थ श्रीकृष्णं शरणं व्रज।। ज्योतिष में काल मुख्य है। अर्थात् काल को लेकर ही ज्योतिष चलता हैं। उसी काल को भगवान ने अपना स्वरूप बताया है... Read more »
दान का शास्त्रीय स्वरूप मनुष्य का जीवन कर्मप्रधान है और कर्मेन्द्रियों में हाथ का महत्वपूर्ण स्थान है; क्योंकि मनुष्य जीवन में अधिकांश कार्य हाथ से ही सम्पादित होते हैं... Read more »
भारत में दान को सदैव सर्वोपरि माना गया है। कबीर ने कहा है- कर साहिब की बंदगी और भूखे को दो अन्न। प्राचीनकाल से ही दान की महत्ता को... Read more »
युधिष्ठिर ने कहा- जनार्दन! ‘अपरा’ का सारा माहात्म्य मैंने सुन लिया, अब ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में जो एकादशी हो उसका वर्णन कीजिये। भगवान श्रीकृष्ण बोले- राजन्! इसका वर्णन परम... Read more »
ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्षअपरा एकादशी कथा युधिष्ठिर ने पूछा- जनार्दन! ज्येष्ठ के कृष्ण पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? मैं उसका माहात्म्य सुनना चाहता हूँ। उसे बताने... Read more »
ज्योतिषशास्त्र में ग्रहो का अनुकुल्य – प्राप्ति हेतु विभिन्न प्रकार के दान बताये गये है । ग्रहों के भिन्न – भिन्न प्रकार के दान कहे गये है, जो संक्षेप... Read more »
मनुष्य के जीवन में दान का अत्यधिक महत्व बतलाया गया है, यह एक प्रकार का नित्यकर्म है । मनुष्य को प्रतिदिन कुछ दान अवश्य करना चाहिये – ‘श्रद्धया देयम्,... Read more »