
ग्रीष्म ऋतुपेय प्रदार्थ
मयुखैर्जगतः स्नेहं ग्रीष्मे पेपीयते रविः।
स्वादु शीतं द्रवं स्निग्धमन्नपानं तदाहितम्।। (चरक संहिता)
अर्थात ग्रीष्म ऋतु में सूर्य अपनी प्रखर किरणों द्वारा संसार के जड़ चेतन जगत का स्नेह (द्रव अंश) सोख लेता है। अतः इस काल में स्वादु रस वाले, शीत वीर्य गुण वाले तथा स्निग्ध खाद्य एवं पेय पदार्थो का ही सेवन करना चाहिए। उपरोक्त सूत्र के आधार पर यहां पर कुछ शीत पेय पदार्थो का वर्णन कर रही हूँ।
पानी: नित्य कम से कम 3 लीटर पानी जरूर पीवें घर से निकलते वक्त एक गिलास पानी पीकर ही निकलना चाहिए क्योंकि पेट में ठंडा पानी रहने से लू नहीं लगती एवं चेहरे की ताजगी बनी रहती है।
दही: आहार विशेषज्ञ शैलजा त्रिवेदी (दै.भा. 2.4.14) के अनुसार नियमित दही के सेवन से आंत का रोग व पेट की बिमारियों का खतरा कम हो जाता है। भोजन के साथ या बाद में दही या छाछ का प्रयोग लाभप्रद रहता है। दही में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम और प्रोटीन पाया जाता है यह वजन कम करने में भी मददगार है।
कैरी: कच्चे आम को कैरी कहते हैं इसका पानी पीने से लू नहीं लगती एवं शरीर में विटामिन सी की पूर्ति हो जाती है जिससे चेहरे की सुन्दरता में निखार आता है।
गन्ने का रस: गर्मियों में गन्ने का रस बलपूर्वक एवं शरीर में रक्तवर्द्धक माना गया है। इसके सेवन से शरीर को पूर्ण पौष्टिकता प्राप्त होती है तथा शीतलताप्रद भी है।
रसपान: विभिन्न फलों के रस का पान भी गर्मी में लाभप्रद रहता है जैसे आमरस, टमाटर रस, मौसमी रस, इमली का पानी आदि।
नारियल का पानी: यह पाचक होने के साथ साथ मूत्राशय व अमाशय सम्बन्धी रोगों में लाभप्रद है। गर्मियों में नियमित सेवन से शारीरिक सौन्दर्य व स्वास्थ में निखार आता है। इसके अलावा साग-सब्जियों का रस नींबूरस, शर्बत आदि का प्रयोग भी लाभप्रद है।
– शालिनी व्यास