
अग्नि पुराण के दो सौ तीसवें अध्याय में यात्रा के समय होने वाले शुभाशुभ शकुनों का विस्तार से वर्णन किया गया है। पुष्कर और परशुराम संवाद के साथ में साधक को किस प्रकार वांछित फल हेतु इसका प्रयोग करना चाहये और संकेत शब्दों को अपने गुरू जी से समझना चाहिये। पुष्कर कहते हैं – परशुराम जी ! श्वेत वस्त्र, स्वच्छ जल, फल से भरा हुआ वृक्ष, निर्मल आकाश, खेत में लगे हुए अन्न और काला धान्य – इनका यात्रा के समय दिखायी देना अशुभ है। रूई, तृणमिश्रित सूखा गोबर (कंडा), धन, अंगार, गृह, करायल, मंूड मुडाकर तेल लगाया हुआ नग्न साधु, लोहा, कीचड़, चमड़ा, बाल, ंपागल मनुष्य, हिंजड़ा, चाण्डाल, श्वपच आदि, बंधन की रक्षा करने वाले मनुष्य, गर्भिणी स्त्री, विधवा, तिल की खली, मृत्यु, भूसी, राख, खोपड़ी, हड्डी और फूटा हुआ बर्तन-युद्ध यात्रा के समय इनका दिखायी देना अशुभ माना जाता है। बाजों का वह शब्द, जिसमें फूटे हुए झाँझ की भयंकर ध्वनि सुनायी पड़ती हो, अच्छा नहीं माना गया है। ’चले आओ’-यह शब्द यदि सामने की ओर से शब्द हो तो उŸाम है, किंतु पीछे की ओर से शब्द हो तो अशुभ माना गया है। ’जाओं’ – यह शब्द यदि पीछे की ओर से हो तो उŸाम है; किंतु आगे की ओर से हो तो निन्दित होता है। ’कहां जाते हो ? ठहरो, न जाओं; वहां जाने से तुम्हें क्या लाभ है ?’ ऐसे शब्द अनिष्ट की सूचना देने वाले हैं। यदि ध्वजा आदि के ऊपर चील आदि मांसाहारी पक्षी बैठ जायें, घोड़े, हाथी आदि वाहन लड़खड़ाकर गिर पड़ें, हथियार टूट जायें, हार आदि के द्वारा मस्तस्क पर चोट लगे तथा छत्र और वस्त्र आदि को कोई गिरा दे तो ये सब अपशकुन मृत्यु का कारण बनते हैं। भगवान् विष्णु की पूजा और स्तुति करने से अमंगल का नाश होता है। यदि दूसरी बार इन अपशकुनों का दर्शन हो तो घर लौट जायें। ।।1-8 )।।
यात्रा के समय श्वेत पुष्पों का दर्शन श्रेष्ठ माना गया है। भरे हुए घड़े का दिखायी देना तो बहुत ही उŸाम है। मांस, मछली, दूर का कोलाहल, अकेला वृद्ध पुरूष, पशुओं में बकरे, गौ, घोड़े तथा हाथी, देवप्रतिमा, प्रज्वलित अग्नि, दूर्वा, ताजा गोबर, वेश्या, सोना, चांदी, रत्न, बच, सरसों आदि औषधियां, मंूग, आयुधों में तलवार, छाता, पीढ़ा, राजचिह्न, जिसके पास कोई रोता न हो ऐसा शव, फल घी, दही, दूध, अक्षत, दर्पण, मधु, शंख, ईख, शुभसूचक वचन, भक्त पुरूषों का गाना-बजाना, मेघ की गम्भीर गर्जना, बिजली की चमक तथा मन का संतोश-ये सब शुभ शकुन हैं। एक और सब प्रकार के शुभ शकुन और दूसरी ओर मन की प्रसन्नता – ये दोनों बराबर हैं। ।।9-13।।
-संकलन