
श्री सूक्तः एक प्रयोग
आज हम श्री सूक्त के प्रयोग के सम्बन्ध में यह बताना चाहते हैं कि श्री सूक्त के मंत्रों के द्वारा किस प्रकार वांछित परिणाम प्राप्त किया जा सकता हैं। स्तोत्र का प्रत्येक मंत्र अपने आप में पूर्ण मंत्र है। अगर विधि पूर्वक इसका प्रयोग किया जाये तो शीघ्र कामनापूर्ति संभव है। आज यहां हम प्रथम मंत्र के दो प्रयोगों पर चर्चा कर रहे हैं। ये हमारे गुरुजनों के द्वारा अनुभूत सिद्ध हैं।
श्रीं ह्रीं क्लीं।। हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जात-वेदो म आवह।। श्रीं ह्रीं क्लीं।
स्वर्ण से लक्ष्मी बनाकर उस मूर्ति बनाकर उस मूर्ति का पूजन हल्दी और सुवर्ण-चाँदी के कमल-पुष्पों से करे। फिर सुवासिनी-सौभाग्यवती स्त्री और गाय का पूजन कर, पूर्णिमा के चन्द्र में अथवा जल से भरे हुए कुम्भ में श्रीपरा-नारायणी का ध्यान कर, सोने की माला से कमल-पत्र के आसन पर बैठकर, ‘श्री-सूक्त’ की उक्त ‘हिरण्य-वर्णां’ ऋचा में ‘श्री ह्रीं क्लीं’ बीज जोड़कर प्रातः, दोपहर और सांय एक-एक हजार (दस-दस माला) जप करें। इस प्रकार एक लाख पच्चीस हजार ‘जप’ होने पर मधु और कमल-पुष्प से दशांश ‘होम’ करे और ‘तपर्ण’, ‘मार्जन’ तथा ‘ब्राह्मण-भोजन’ नियम से करे।
इस ‘प्रयोग’ का ‘पुरश्चरण’ 32 लाख ‘जप’ का है। सवा लाख का ‘जप’ व ‘होम’ हो जाने पर, दूसरे सवा लाख का ‘जप’ प्रारम्भ करे। ऐसे कुल 26 प्रयोग करने पर 32 लाख का प्रयोग सम्पूर्ण होता है। इस प्रयोग का फल राज-वैभव, सुवर्ण, रत्न, वैभव, विलास, वाहन, स्त्री, सन्तान और सब प्रकार के सांसारिक सुख की प्राप्ति है। पहला प्रयोग पूर्ण होने से लाभ होने लगेगा। व्यापार, उद्यम, नौकरी-धन्धा, राज-कार्य आदि में विविध लाभ होने लगेगा। कर्ता और उसके कुटुम्बी-जनों को 100 वर्ष से अधिक आयुष्य मिलकर अन्त में उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।
ऊँ श्रीं ह्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद
ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं महा-लक्ष्म्यै नमः।।
दुर्गें! स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।
ऊँ ऐं हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जात-वेदो म आवह।।
दारिद्रय-दुःख-भय-हारिणि का त्वदन्या,
सर्वोंपकार-करणाय सदाऽर्द्र-चिता।।
ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद
ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं महा-लक्ष्म्यै नमः।।
यह ‘श्री-सूक्त’ का एक मन्त्र सम्पुटित हुआ। इस प्रकार ‘तां’ म आवह’ से लेकर ‘यःशुचि’ तक के 16 मन्त्रों को सम्पुटित कर पाठ करने से 1 पाठ हुआ। ऐसे 12 हजार पाठ करे। चम्पा का फूल, शहद, घृत, गुड़ का 1200 पाठ से होम, 120 पाठ से तर्पण, 12 पाठ से मार्जन और यथा-शक्ति ब्रह्म-भोजन करे। इस प्रयोग से धन-धान्य, ऐश्वर्य, समृद्धि, वचन-सिद्धि प्राप्त होती हैं।
– पं. गिरधर लाल रंगा